Shah Bano, मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला थीं। उनकी शादी वकील Mohammad Ahmed Khan से हुई थी। करीब 40 साल तक साथ रहने के बाद, 1978 में उनके पति ने उन्हें ‘तीन तलाक’ देकर तलाक दे दिया। तलाक के बाद उन्होंने आर्थिक सहायता देने से इंकार कर दिया, जबकि Shah Bano case उस समय 62 वर्ष की थीं और उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं था।
इस स्थिति में Shah Bano ने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, जो किसी भी महिला को, धर्म की परवाह किए बिना, भरण-पोषण (maintenance) का अधिकार देती है यदि वह खुद का पालन-पोषण नहीं कर सकती।
शाह बानो केस पर आधारित नई फिल्म
शाह बानो केस की कहानी को जल्द ही बड़े पर्दे पर भी देखा जाएगा। इस फिल्म में Yami Gautam और Emraan Hashmi मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। दोनों कलाकारों ने सोशल मीडिया पर इस फिल्म को लेकर काफी उत्साह दिखाया है और अपनी प्रोफाइल पर इसकी जानकारी साझा की है।
Yami Gautam का Instagram अकाउंट: @yamigautam
Emraan Hashmi का Instagram अकाउंट: therealemraan
Supreme Court का फैसला – Shah Bano Case में ऐतिहासिक निर्णय
स्थानीय अदालत और फिर Madhya Pradesh High Court ने Shah Bano के पक्ष में फैसला दिया। Mohammad Ahmed Khan ने इस फैसले को Supreme Court में चुनौती दी। उनका तर्क था कि Muslim Personal Law के अनुसार, तलाकशुदा महिला को केवल ‘इद्दत’ (लगभग तीन महीने) की अवधि तक ही भरण-पोषण दिया जाता है।
1985 में Supreme Court का फैसला आया, जिसमें कहा गया कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होती है और यह धर्म से ऊपर है। इस फैसले ने Muslim women rights को कानूनी मजबूती दी। अदालत ने माना कि Shah Bano को अपने पति से भरण-पोषण पाने का पूरा अधिकार है। यह फैसला Chief Justice Y. V. Chandrachud की अध्यक्षता में दिया गया था।

Uniform Civil Code और समाज में असर
Shah Bano Case ने देश में Uniform Civil Code की बहस को नई दिशा दी। यह मांग की जाने लगी कि सभी धर्मों के नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून होना चाहिए, जिससे महिलाओं को समान अधिकार मिल सकें। Uniform Civil Code का उद्देश्य है कि धर्म के आधार पर भेदभाव किए बिना, हर नागरिक को समान कानूनी संरक्षण मिले।
राजनीति और कानून में बदलाव
इस फैसले के विरोध के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री Rajiv Gandhi की सरकार ने 1986 में एक नया कानून पास किया—Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act। इस कानून के तहत मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ ‘इद्दत’ की अवधि तक ही भरण-पोषण देने का प्रावधान किया गया, और उसके बाद जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड या परिवार पर डाल दी गई।
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इस कानून ने Supreme Court के फैसले को काफी हद तक अप्रभावी बना दिया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने देश में एक बड़ी बहस को जन्म दिया—क्या भारत को अब एक Uniform Civil Code की ओर बढ़ना चाहिए?

2025 की ताज़ा घटनाएँ
फिल्म निर्माण
Shah Bano Case पर आधारित एक कोर्टरूम ड्रामा फिल्म 2025 में रिलीज होने वाली है, जिसमें Emraan Hashmi and Yami Gautam मुख्य भूमिकाओं में हैं।
Supreme Court की टिप्पणी
Justice Surya Kant ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर Shah Bano Case का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए Uniform Civil Code की आवश्यकता है।
Waqf संशोधन बिल पर चर्चा
संसद में Waqf Amendment Bill पर चर्चा के दौरान BJP और Congress के बीच बहस में Shah Bano Case फिर चर्चा का विषय बना है।
नवीनतम सुप्रीम कोर्ट फैसला
Supreme Court ने 2025 में फिर से स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण पाने का अधिकार है। यह फैसला Muslim women rights की पुष्टि करता है और Shah Bano Case की विरासत को मजबूत करता है।

निष्कर्ष
Shah Bano Case महज एक कानूनी लड़ाई नहीं थी—यह भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा थी। यह साबित करने का मौका था कि क्या हमारा संविधान सिर्फ कागज़ों में बराबरी की बात करता है या वास्तव में हर नागरिक को समान अधिकार देता है।
आज जब हम Muslim women rights, धार्मिक कानूनों की पुनर्व्याख्या और Uniform Civil Code जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं, तब Shah Bano की लड़ाई हमें यह याद दिलाती है कि हर सुधार की शुरुआत एक आवाज़ से होती है। और यह आवाज़, आज भी उतनी ही ताकतवर है जितनी 1985 में थी।
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